परिचय
स्ट्रोक के बाद की पुनर्वास प्रक्रिया में आहार और पोषण का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, खासकर भारतीय संदर्भ में जहाँ भोजन की आदतें सांस्कृतिक और पारिवारिक परंपराओं से जुड़ी होती हैं। स्ट्रोक एक गंभीर स्थिति है, जिसमें मस्तिष्क के किसी भाग में रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है, जिससे कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसे समय में सही आहार और संतुलित पोषण न केवल शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है बल्कि रोगी के ठीक होने की गति को भी बढ़ाता है। भारत में खान-पान की विविधता, मसालों का उपयोग, शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन की उपलब्धता तथा विभिन्न क्षेत्रीय व्यंजन यह दर्शाते हैं कि हर व्यक्ति के लिए एक विशेष डाइट योजना तैयार करना जरूरी है।
आमतौर पर देखा गया है कि स्ट्रोक के बाद रोगियों को निगलने या चबाने में कठिनाई हो सकती है, जिससे उनके पोषण स्तर पर असर पड़ता है। इसके अलावा, कई बार परिवारजन भी यह नहीं समझ पाते कि किस तरह का भोजन रोगी के लिए उपयुक्त होगा। इसलिए, भारतीय खाद्य संस्कृति और उपलब्ध संसाधनों के अनुसार पोषण योजनाएं बनाना जरूरी हो जाता है।
नीचे दी गई तालिका में स्ट्रोक के बाद आमतौर पर आने वाली पोषण संबंधी समस्याएं और उनके संभावित भारतीय समाधान दिए गए हैं:
समस्या | भारतीय संदर्भ में समाधान |
---|---|
निगलने में कठिनाई (Dysphagia) | दाल का सूप, खिचड़ी, मुलायम इडली, मसला हुआ केला |
कम भूख लगना | हल्की मसालेदार दही, नींबू पानी, फलों का रस |
ऊर्जा की कमी | घी या मक्खन युक्त रोटी/पराठा, मूंगफली चटनी, सूखे मेवे |
प्रोटीन की आवश्यकता | पनीर भुर्जी, अंडा करी (यदि अनुमति हो), मूंग दाल चीला |
इस प्रकार देखा जाए तो भारतीय खाने की आदतों को ध्यान में रखते हुए आहार और पोषण की एक समग्र योजना बनाना स्ट्रोक रोगी की पुनर्वास प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बना सकता है। इस लेख श्रृंखला में हम आगे विस्तार से जानेंगे कि कैसे अलग-अलग भारतीय व्यंजन, घरेलू उपाय और पोषक तत्व स्ट्रोक के बाद रोगी के स्वास्थ्य सुधार में मददगार सिद्ध हो सकते हैं।
2. स्ट्रोक के बाद पोषण की आवश्यकताएँ
स्ट्रोक से प्रभावित रोगियों के लिए विशेष पोषण संबंधी जरुरतें
स्ट्रोक के बाद शरीर की पोषण संबंधी आवश्यकताएँ बदल जाती हैं। इस समय प्रोटीन, विटामिन, और मिनरल्स की पूर्ति करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि ये मांसपेशियों की मजबूती, दिमाग की रिकवरी और इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद करते हैं। भारतीय खाने की आदतों में दालें, फलियाँ, ताजे फल-सब्जियाँ, दूध, दही और साबुत अनाज का सेवन बढ़ाना चाहिए। तेल और मसाले कम मात्रा में लें ताकि पाचन आसान हो और शरीर पर अतिरिक्त बोझ न पड़े।
आवश्यक पोषक तत्वों का संक्षिप्त विवरण
पोषक तत्व | महत्व | भारतीय आहार स्रोत |
---|---|---|
प्रोटीन | मांसपेशियों की मरम्मत और ताकत के लिए | दालें, छोले, पनीर, दही, अंडा |
विटामिन B12 | नर्व सिस्टम की रिकवरी के लिए | दूध, दही, अंडा, चिकन |
फोलिक एसिड | सेल रिपेयर और ब्लड हेल्थ के लिए | पालक, चना, मूंगफली |
फाइबर | पाचन में सहायक | फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज |
जीवनशैली और व्यायाम के साथ पोषण का तालमेल
स्ट्रोक से उबर रहे व्यक्ति को संतुलित आहार के साथ हल्का व्यायाम भी जरूरी है। योग, ध्यान या डॉक्टर द्वारा सुझाया गया फिजिकल थेरेपी भारतीय संस्कृति में आम है और यह रिकवरी में मदद करता है। सही आहार लेने से एनर्जी बनी रहती है जिससे रोजमर्रा की गतिविधियाँ करना आसान होता है। कोशिश करें कि दिनभर थोड़ा-थोड़ा करके 4-5 बार भोजन करें ताकि शरीर को लगातार ऊर्जा मिलती रहे। नमक और चीनी का सेवन सीमित रखें; अधिक पानी पिएँ ताकि डिहाइड्रेशन न हो।
भारतीय जीवनशैली के अनुसार दैनिक आदतें
- सुबह हल्का नाश्ता जैसे उपमा या दलिया लें
- दोपहर को घर का बना ताजा खाना जैसे दाल-चावल-सब्जी खाएँ
- शाम को फल या स्प्राउट्स लें
- रात में हल्का भोजन करें जैसे मूंग दाल खिचड़ी या रोटी-सब्जी
रिकवरी में मदद कैसे करता है सही पोषण?
सही पोषण से मरीज जल्दी रिकवर कर सकते हैं क्योंकि इससे शरीर को नए सेल्स बनाने में मदद मिलती है। यह थकान कम करता है और मूड को अच्छा रखता है। स्ट्रोक के बाद कमजोरी सामान्य होती है लेकिन पौष्टिक भोजन लेने से ताकत लौटने लगती है और इन्फेक्शन से बचाव भी होता है। परिवारजन को चाहिए कि वे मरीज का मनोबल बढ़ाएँ और समय पर पौष्टिक खाना दें ताकि रोगी जल्द स्वस्थ हो सके। भारतीय संस्कृति में घर का बना ताजा खाना सबसे बेहतर विकल्प माना जाता है जो स्ट्रोक रिकवरी में असरदार साबित हो सकता है।
3. भारतीय खानपान की आदतें और उनमें संशोधन
भारतीय भोजन की विविधता
भारत का भोजन क्षेत्रीय विविधताओं से भरा हुआ है। उत्तर भारत में गेहूं, चावल और दालें मुख्य हैं, जबकि दक्षिण भारत में इडली, डोसा, सांभर और चावल ज्यादा खाए जाते हैं। पश्चिमी भारत में ज्वार-बाजरा और पूर्वी भारत में मछली व चावल प्रमुख हैं। मसाले जैसे हल्दी, धनिया, जीरा और मिर्च भी हर जगह उपयोग किए जाते हैं। स्ट्रोक के बाद पोषण को लेकर इन पारंपरिक आदतों में कुछ बदलाव करना जरूरी है ताकि स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सके।
मसालों का समुचित प्रयोग
भारतीय भोजन में मसालों का खास महत्व है। हल्दी में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो रिकवरी में सहायक हो सकते हैं। लेकिन अत्यधिक तेल और तीखे मसालों का सेवन स्ट्रोक रोगियों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। नमक की मात्रा को भी नियंत्रित करना चाहिए क्योंकि यह ब्लड प्रेशर बढ़ा सकता है।
मसाला/सामग्री | फायदा | परिवर्तन |
---|---|---|
हल्दी | एंटी-इन्फ्लेमेटरी | उचित मात्रा में डालें |
नमक | स्वाद के लिए | कम मात्रा रखें |
तेल/घी | ऊर्जा के लिए | कम वसा वाले तेल चुनें, घी सीमित करें |
मिर्च/मसालेदार सामग्री | स्वाद बढ़ाते हैं | अत्यधिक तीखापन टालें |
पकाने के तरीके: सेहतमंद विकल्प चुनें
गहरे तले हुए (फ्राई) खाद्य पदार्थ आमतौर पर भारतीय थाली का हिस्सा होते हैं, लेकिन स्ट्रोक के बाद इन्हें उबला, स्टीम्ड या ग्रिल्ड विकल्पों से बदलना अधिक फायदेमंद रहेगा। इससे फैट कम होगा और पोषक तत्व बने रहेंगे। कोशिश करें कि सब्ज़ियाँ कम तेल में पकाएँ और सलाद या दही को रोज़ के खाने में शामिल करें।
पाक शैली के बदलाव की झलक:
पारंपरिक तरीका | स्वस्थ विकल्प |
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गहरे तले हुए पकोड़े/समोसे | भाप में बने स्नैक्स या बेक किए गए आइटम्स (इडली, ढोकला) |
ज्यादा घी या मक्खन वाला पराठा | कम तेल वाली रोटी या मिस्सी रोटी |
मिठाइयाँ (जैसे गुलाब जामुन) | फ्रूट चाट या सूखे मेवे सीमित मात्रा में |
करी में अधिक क्रीम/मलाई | लो-फैट दही या टमाटर आधारित ग्रेवी इस्तेमाल करें |
क्षेत्रीय विविधता का ध्यान रखें
हर क्षेत्र की अपनी खासियत होती है, इसलिए आहार परिवर्तनों को स्थानीय उपलब्धता और संस्कृति के अनुसार ढालना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, दक्षिण भारत में ब्राउन राइस या रेड राइस अपनाया जा सकता है; पंजाब क्षेत्र में राजमा-दाल कम मसाले व तेल के साथ बनाई जा सकती है; बंगाल क्षेत्र में मछली को ग्रिल या भाप में पकाकर खाया जा सकता है। इस तरह छोटे-छोटे बदलाव स्ट्रोक रोगियों के लिए आहार को सुरक्षित व स्वादिष्ट बनाए रख सकते हैं।
याद रखें: धीरे-धीरे बदलाव करें और घर के सभी सदस्यों को इन परिवर्तनों में शामिल करें ताकि मरीज को भावनात्मक सहयोग मिल सके। पोषण विशेषज्ञ से सलाह लेना भी फायदेमंद रहता है।
4. कैलोरी और मैक्रोन्यूट्रिएंट्स का संतुलन
भारतीय खाने की आदतों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा का संतुलन
स्ट्रोक के बाद पुनर्वास के समय सही आहार और पोषण सबसे ज़रूरी होता है। भारतीय भोजन में अक्सर चावल, रोटी, दाल और सब्ज़ियाँ प्रमुख रूप से खाई जाती हैं। लेकिन कई बार इनमें कार्बोहाइड्रेट ज्यादा और प्रोटीन कम होता है, जिससे शरीर को पूरी रिकवरी के लिए जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते।
कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates)
कार्बोहाइड्रेट हमारी ऊर्जा का मुख्य स्रोत हैं। भारत में चावल, गेहूं (रोटी), आलू आदि से ये मिलता है। स्ट्रोक के बाद मरीज को हल्की मात्रा में, लेकिन पोषक कार्बोहाइड्रेट जैसे ब्राउन राइस, मल्टीग्रेन रोटी या साबुत अनाज लेना चाहिए ताकि ब्लड शुगर नियंत्रण में रहे।
प्रोटीन (Protein)
प्रोटीन मांसपेशियों की मरम्मत और रिकवरी के लिए बहुत जरूरी है। भारत में दाल, पनीर, दूध, अंडा, चिकन या मछली से प्रोटीन लिया जा सकता है। रोज़ाना प्रत्येक भोजन में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में प्रोटीन शामिल करें। वेजिटेरियन लोगों के लिए सोया, मूंगफली और दालें अच्छा विकल्प हैं।
वसा (Fats)
अच्छी वसा जैसे तिल का तेल, सरसों का तेल, मूंगफली का तेल या घी सीमित मात्रा में लें। फ्राई और जंक फूड से बचें क्योंकि इससे वजन बढ़ने व हार्ट पर असर पड़ सकता है। नट्स और बीजों से भी हेल्दी फैट्स मिलते हैं।
भारतीय थाली में पोषक तत्वों का संतुलन कैसे बनाएं?
पोषक तत्व | भारतीय स्रोत | सुझावित मात्रा / टिप्स |
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कार्बोहाइड्रेट | चावल, रोटी, बाजरा, दलिया | साबुत अनाज चुनें; सफेद चावल/मैदा कम करें |
प्रोटीन | दालें, छोले, राजमा, पनीर, अंडा, चिकन/मछली | हर भोजन में थोड़ा-थोड़ा प्रोटीन जोड़ें |
वसा | सरसों/तिल/मूंगफली तेल, घी, नट्स (बादाम/अखरोट) | सीमित मात्रा; तला हुआ खाना एवॉइड करें |
अन्य जरूरी पोषक तत्व | हरी सब्ज़ियाँ, फल, दूध/दही | रोज़ 2-3 तरह की सब्ज़ी व 1-2 फल खाएं |
कुछ आसान टिप्स:
- भोजन को रंग-बिरंगा बनाएं: अलग-अलग रंग की सब्ज़ियां शामिल करें जिससे विटामिन्स और मिनरल्स भरपूर मिलें।
- फाइबर पर ध्यान दें: सलाद या अंकुरित अनाज जरूर लें जिससे पेट ठीक रहे और एनर्जी बनी रहे।
- पानी पीना ना भूलें: हाइड्रेटेड रहना भी उतना ही जरूरी है जितना बाकी पोषण।
- घरेलू खाना सबसे अच्छा: बाहर के प्रोसेस्ड फूड या पैकेट वाले स्नैक्स से बचें।
याद रखें:
हर व्यक्ति की जरूरत अलग होती है इसलिए डॉक्टर या डाइटिशियन से सलाह लेकर ही अपनी डाइट प्लान करें — खासकर स्ट्रोक के बाद रिकवरी के दौरान!
5. पारिवारिक और सांस्कृतिक सुरुआतियाँ
भारतीय परिवारों की संरचना और पुनर्वास में भूमिका
भारत में पारिवारिक ढांचा अक्सर संयुक्त या विस्तृत होता है, जिसमें एक ही छत के नीचे कई पीढ़ियाँ साथ रहती हैं। ऐसे परिवारों में स्ट्रोक के बाद रोगी की देखभाल केवल एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं होती, बल्कि सभी सदस्य मिलकर रोगी को सहयोग देते हैं। यह सामूहिक देखभाल भोजन और पोषण संबंधी निर्णयों को भी प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, दादी-नानी पारंपरिक व्यंजन बनाने का सुझाव देती हैं, जबकि युवा सदस्य डॉक्टर की सलाह पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
देखभालकर्ता (Caregiver) की भूमिका
स्ट्रोक के बाद रोगी के आहार और पोषण का बड़ा हिस्सा देखभालकर्ता के कंधों पर होता है। भारत में आमतौर पर यह भूमिका महिलाओं जैसे माँ, पत्नी या बेटी निभाती हैं। वे न केवल खाना बनाती हैं बल्कि इस बात का भी ध्यान रखती हैं कि रोगी को समय पर, पौष्टिक और आसानी से पचने वाला भोजन मिले। देखें कि देखभालकर्ता किन पहलुओं का ध्यान रखते हैं:
देखभालकर्ता की जिम्मेदारियाँ | प्रभाव |
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समय पर भोजन देना | रोगी की ऊर्जा और रिकवरी में मदद करता है |
पौष्टिक भोजन तैयार करना | स्वास्थ्य लाभ तेज़ होता है |
डॉक्टर/डायटीशियन की सलाह मानना | सही पोषक तत्व सुनिश्चित होते हैं |
पारंपरिक स्वाद व संस्कृति का ध्यान रखना | रोगी मानसिक रूप से खुश रहता है |
सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का महत्व
भारतीय समाज में खाने-पीने से जुड़े कई रीति-रिवाज होते हैं। जैसे, कुछ घरों में शाकाहारी भोजन प्रचलित है तो कहीं मसालेदार या तला हुआ भोजन पसंद किया जाता है। त्योहारों और धार्मिक अवसरों पर विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं, जिनका रोगियों के आहार पर भी असर पड़ता है। स्ट्रोक के बाद सही आहार चुनते समय इन सांस्कृतिक बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि परिवार और रोगी दोनों संतुष्ट रहें। उदाहरण के लिए, उपवास (fasting) के दौरान हल्के फल या दूध जैसी चीजें दी जा सकती हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हों।
परिवार और संस्कृति: संतुलन कैसे बनाएँ?
- पारंपरिक व्यंजनों को कम तेल, कम नमक या भाप में पकाकर स्वस्थ बनाया जा सकता है।
- रोजमर्रा के खाने में स्थानीय मौसमी फल-सब्ज़ियों को शामिल करें।
- त्योहारों पर भी स्वस्थ विकल्प तलाशें—जैसे तले हुए स्नैक्स की जगह भुने हुए या उबले स्नैक्स दें।
- घर के सभी सदस्य मिलकर रोगी को भावनात्मक समर्थन दें ताकि उसका मनोबल बना रहे।
महत्वपूर्ण बातें याद रखें:
- पारिवारिक सहयोग से मरीज जल्दी स्वस्थ होता है।
- संस्कृति और स्वाद का ख्याल रखते हुए स्वास्थ्यवर्धक विकल्प चुनें।
- देखभालकर्ता नई रेसिपीज़ सीखकर पोषणयुक्त भोजन बना सकते हैं।
- जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञ से सलाह लें।
6. स्मरण रखने योग्य बातें और व्यावहारिक सुझाव
भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ
स्ट्रोक के बाद आहार में बदलाव लाना अक्सर कठिन हो सकता है, खासकर जब धार्मिक व्रत, उपवास या पारिवारिक परंपराएँ होती हैं। भारत में कई समुदाय उपवास रखते हैं या कुछ विशेष खाद्य पदार्थों से परहेज करते हैं। ऐसी परिस्थितियों में संतुलित पोषण बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
धार्मिक व्रत और उपवास के दौरान सुझाव:
- फल, दूध, दही जैसे पौष्टिक विकल्प चुनें जो अधिकतर उपवास में मान्य होते हैं।
- सूखे मेवे (बादाम, किशमिश) लें ताकि ऊर्जा मिलती रहे।
- अगर अनाज नहीं खा सकते तो साबूदाना, सिंघाड़े का आटा या कुट्टू का आटा इस्तेमाल करें।
- डॉक्टर से सलाह लेकर ही उपवास रखें; यदि जरूरी हो तो आहार विशेषज्ञ से भी परामर्श लें।
खाना पकाने की भारतीय विधियाँ
भारतीय खाना पकाने की पारंपरिक विधियाँ जैसे डीप फ्राइंग, तड़का या अधिक तेल-मसाले का प्रयोग स्ट्रोक के बाद स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। बेहतर है कि कम तेल और कम मसाले का इस्तेमाल करें।
स्वस्थ खाना पकाने के सुझाव:
- भाप में पका हुआ (स्टीम्ड), उबला हुआ या ग्रिल किया हुआ खाना अपनाएँ।
- ताजा हरी सब्ज़ियों का सलाद लें या सब्जियाँ हल्के तेल में भूनें (सॉटे करें)।
- फैटी मीट और घी-तेल वाले खाने से बचें; सरसों, तिल या मूँगफली के तेल को सीमित मात्रा में प्रयोग करें।
- नमक का सेवन कम करें और स्वाद बढ़ाने के लिए नींबू, धनिया, पुदीना जैसे प्राकृतिक फ्लेवरिंग एजेंट्स इस्तेमाल करें।
स्थानीय उपलब्धता और व्यावहारिक डाइट टिप्स
भारत के हर क्षेत्र में अलग-अलग मौसमी फल-सब्ज़ियाँ और अनाज उपलब्ध होते हैं। इनका सही उपयोग करके भी स्ट्रोक के बाद पोषण को बेहतर बनाया जा सकता है। नीचे एक टेबल दिया गया है जिसमें विभिन्न राज्यों के अनुसार स्थानीय खाद्य विकल्प सुझाए गए हैं:
क्षेत्र/राज्य | स्थानीय विकल्प (स्ट्रोक के बाद) |
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उत्तर भारत | चना, मूँग दाल, पालक, गाजर, दही, बाजरा रोटी |
दक्षिण भारत | इडली, सांभर, नारियल पानी, रागी डोसा, भाप वाली सब्ज़ियाँ |
पूर्वी भारत | पोहा, लौकी, मछली (ग्रिल्ड/उबली), चावल का पानी (पेया) |
पश्चिम भारत | मूँगफली चटनी, भाखरी (कम तेल में), खिचड़ी, कच्चे सलाद |
पूर्वोत्तर भारत | भाप में पकाई गई सब्ज़ियाँ, फिश स्ट्यू, लोकल ग्रीन्स (फर्न्स आदि) |
अतिरिक्त व्यावहारिक सुझाव:
- भोजन को छोटे-छोटे हिस्सों में बार-बार खाएं ताकि पाचन आसान रहे और शरीर को नियमित ऊर्जा मिलती रहे।
- पर्याप्त पानी पिएं – दिनभर में कम-से-कम 8-10 गिलास जल जरूर लें।
- यदि निगलने में कठिनाई हो रही हो तो सूप्स, दलिया जैसी मुलायम चीजें चुनें। जरूरत पड़ने पर भोजन को ब्लेंड करके दें।
- ताजे मौसमी फल जैसे पपीता, केला, सेब आदि जरूर शामिल करें लेकिन अत्यधिक मीठे फलों से बचें अगर डायबिटीज है।
- आहार डायरी रखें जिसमें प्रतिदिन क्या-क्या खाया इसका रिकॉर्ड बनाएं; इससे पोषण संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।
- घरवालों को भी स्ट्रोक रोगी के आहार संशोधन के बारे में समझाएँ ताकि वे सहयोग कर सकें।
Santulit aur swasth aahar ke chune hue vikalpon se स्ट्रोक रोगी धीरे-धीरे अपनी शक्ति वापस पा सकते हैं और पुनर्वास प्रक्रिया को आसान बना सकते हैं। भारतीय संस्कृति एवं उपलब्ध संसाधनों के अनुसार यह संभव है — बस थोड़ा ध्यान और बदलाव की जरूरत है!
7. निष्कर्ष
स्ट्रोक के बाद पुनर्वास में आहार और पोषण का महत्व भारतीय समाज में विशेष रूप से बढ़ जाता है। हर व्यक्ति की ज़रूरतें अलग होती हैं, लेकिन भारतीय खाने की आदतों को ध्यान में रखते हुए सही पोषण लेना, स्वस्थ जीवनशैली की ओर पहला कदम है। मोटे तौर पर, संतुलित आहार न केवल शरीर को मज़बूती देता है बल्कि दिमाग़ी स्वास्थ्य और रोजमर्रा की गतिविधियों में भी सुधार लाता है। नीचे तालिका के माध्यम से मुख्य बिंदुओं को समझा जा सकता है:
पोषण तत्व | भारतीय स्रोत | पुनर्वास में लाभ |
---|---|---|
प्रोटीन | दाल, पनीर, अंडा, सोया | मांसपेशियों की मरम्मत और ताकत बढ़ाना |
कार्बोहाइड्रेट | चावल, रोटी, बाजरा, ज्वार | ऊर्जा प्रदान करना |
विटामिन्स और मिनरल्स | हरी सब्ज़ियां, फल, अंकुरित अनाज | प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाना |
फाइबर | फल, सलाद, साबुत अनाज | पाचन तंत्र को स्वस्थ रखना |
स्वस्थ वसा | मूंगफली का तेल, सरसों का तेल, घी (सीमित मात्रा) | हृदय स्वास्थ्य और ऊर्जा के लिए आवश्यक |
हर दिन ताज़ा और घर का बना खाना खाने की आदत डालें। नमक और शक्कर का सेवन सीमित रखें तथा तली-भुनी चीज़ों से बचें। किसी भी नए आहार परिवर्तन से पहले डॉक्टर या डाइटीशियन से सलाह लेना ज़रूरी है। याद रखें कि सही पोषण ही स्ट्रोक के बाद फिर से स्वस्थ जीवन शुरू करने की नींव है। अपने परिवार के साथ मिलकर पौष्टिक भोजन बनाएँ और छोटे-छोटे बदलावों से एक बड़ा फर्क महसूस करें।