बाल पुनर्वास में भाषण और श्रवण विकारों की सामान्य प्रकार और उनके कारण

बाल पुनर्वास में भाषण और श्रवण विकारों की सामान्य प्रकार और उनके कारण

विषय सूची

1. बाल पुनर्वास में भाषण और श्रवण विकारों की भूमिका

बाल पुनर्वास के संदर्भ में भाषण और श्रवण विकार

भारत में बच्चों के समग्र विकास के लिए बाल पुनर्वास (Child Rehabilitation) अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से भाषण (Speech) और श्रवण (Hearing) विकार उन समस्याओं में शामिल हैं, जो बच्चे के सामाजिक, मानसिक और शैक्षिक विकास पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। जब कोई बच्चा ठीक से सुन या बोल नहीं पाता, तो उसे स्कूल, परिवार और समाज में संवाद स्थापित करने में कठिनाई होती है। यह समस्या शहरी ही नहीं, ग्रामीण भारत में भी आम देखने को मिलती है।

भाषण और श्रवण विकारों का महत्व

भाषण और श्रवण दोनों ही कौशल बच्चों के शुरुआती जीवन में सीखने, दोस्त बनाने और आत्मविश्वास विकसित करने के लिए जरूरी हैं। यदि इन विकारों की पहचान समय पर हो जाए और उचित उपचार मिले, तो बच्चों को सामान्य जीवन जीने का बेहतर अवसर मिलता है। भारतीय परिवारों में अक्सर इन समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे बच्चे का विकास बाधित हो सकता है।

संभावित प्रभाव

क्षेत्र संभावित प्रभाव
शिक्षा पढ़ाई-लिखाई में पिछड़ना, कक्षा में भागीदारी की कमी
सामाजिक जीवन मित्रता बनाने या समूह में शामिल होने में परेशानी
आत्मविश्वास खुद पर विश्वास की कमी, शर्मीलापन बढ़ना
भारत के सांस्कृतिक सन्दर्भ में चुनौतियाँ

भारत जैसे विविधता वाले देश में भाषा और बोली के कई प्रकार हैं। इसी वजह से कई बार भाषण या श्रवण विकारों की पहचान करना कठिन हो जाता है। साथ ही, जागरूकता की कमी और सामाजिक कलंक भी परिवारों को सही समय पर मदद लेने से रोकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि माता-पिता, शिक्षकों और समुदाय को इन विकारों के महत्व और उनके शुरुआती संकेतों की जानकारी दी जाए।

2. भारत में आम भाषण विकार: प्रकार और विशेषताएँ

भारतीय सांस्कृतिक और भाषाई विविधता में भाषण विकार

भारत में भाषाओं की विविधता और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण बच्चों में भाषण विकारों के प्रकार और उनकी पहचान थोड़ी भिन्न हो सकती है। यहां के बच्चों को आमतौर पर जिन भाषण विकारों का सामना करना पड़ता है, वे मुख्यतः तीन श्रेणियों में आते हैं: उच्चारण (आर्टिकुलेशन) विकार, गतिशीलता (फ्लुएंसी) विकार, और भाषा संबंधी समस्याएँ। आइए इनकी विशेषताओं को जानें।

उच्चारण (Articulation) विकार

यह विकार तब होता है जब बच्चा शब्दों के अक्षरों या ध्वनियों को सही से नहीं बोल पाता है। भारत में विभिन्न राज्यों की मातृभाषा के प्रभाव के कारण बच्चों की उच्चारण संबंधी समस्याएं अलग-अलग हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, कोई बच्चा र को ल बोल सकता है या कुछ ध्वनियाँ पूरी तरह छोड़ सकता है।

विकार का नाम लक्षण संभावित कारण
उच्चारण (Articulation) ध्वनियों का गलत या अस्पष्ट उच्चारण मातृभाषा का प्रभाव, कान/मुँह की संरचना, सुनने की कमी

गतिशीलता (Fluency) विकार

इसमें बच्चा बोलते समय रुक-रुक कर बोलता है, बार-बार शब्दों या अक्षरों को दोहराता है, या अचानक रुक जाता है। भारत में कई बच्चे हकलाने (Stuttering) जैसी समस्या से जूझते हैं, जो सामाजिक दबाव और क्षेत्रीय बोलियों की वजह से भी बढ़ सकती है।

विकार का नाम लक्षण संभावित कारण
गतिशीलता (Fluency) शब्दों की दोहराव, रुकरुकाव, हकलाना मानसिक दबाव, पारिवारिक इतिहास, बहुभाषीय वातावरण

भाषा संबंधी समस्याएँ (Language Disorders)

ये विकार तब होते हैं जब बच्चे को भाषा समझने या व्यक्त करने में कठिनाई होती है। भारतीय परिवेश में जहां अनेक भाषाएं बोली जाती हैं, वहां बच्चों को कभी-कभी एक ही समय पर कई भाषाओं को सीखना पड़ता है जिससे भाषा विकास धीमा हो सकता है। यह समस्या बोलचाल (Expressive Language Disorder) या समझने (Receptive Language Disorder) दोनों रूपों में दिख सकती है।

विकार का नाम लक्षण संभावित कारण
भाषा संबंधी समस्या (Language Disorder) शब्दों की कमी, वाक्य बनाने में कठिनाई, बात समझने में दिक्कत बहुभाषीय माहौल, न्यूरोलॉजिकल स्थिति, विकास संबंधी देरी
भारत में इन विकारों की सामान्य विशेषताएँ:
  • अनेक भाषाओं के संपर्क से बच्चे कभी-कभी ध्वनियों एवं शब्दों के बीच भ्रमित हो सकते हैं।
  • परिवार और स्कूल का वातावरण भाषण विकास को प्रभावित करता है।
  • कई बार माता-पिता द्वारा स्थानीय बोली/डायलेक्ट्स का प्रयोग भी उच्चारण विकार का कारण बन सकता है।
  • समय पर पहचाने जाने पर अधिकतर विकारों का सफल इलाज संभव है।

श्रवण विकार: वर्गीकरण और भारतीय परिप्रेक्ष्य

3. श्रवण विकार: वर्गीकरण और भारतीय परिप्रेक्ष्य

बच्चों में श्रवण संबंधित आम विकार

भारत में बच्चों के बीच श्रवण विकार एक आम समस्या है। सही समय पर पहचान और उपचार से बच्चों के भाषा विकास में सुधार लाया जा सकता है। बच्चों में प्रमुख श्रवण विकारों को तीन भागों में बांटा जाता है: संवेदनशील श्रवण हानि, संचरणीय श्रवण हानि, और मिश्रित श्रवण हानि।

संवेदनशील श्रवण हानि (Sensorineural Hearing Loss)

यह तब होता है जब कान के भीतरी हिस्से या श्रवण तंत्रिका में कोई समस्या होती है। भारत में यह समस्या जन्मजात कारणों, वायरल संक्रमण (जैसे मम्प्स, रुबेला), जेनेटिक कारणों या शोरगुल वाले वातावरण के कारण हो सकती है।

संचरणीय श्रवण हानि (Conductive Hearing Loss)

यह प्रकार बाहरी या मध्य कान में रुकावट या संक्रमण के कारण होता है। भारत में यह अक्सर कान का मैल जमना, मध्य कान में संक्रमण (ओटाइटिस मीडिया), या चोट लगने की वजह से देखने को मिलता है।

मिश्रित श्रवण हानि (Mixed Hearing Loss)

इसमें संवेदनशील और संचरणीय दोनों ही प्रकार की समस्याएँ शामिल होती हैं। कई बार बच्चों को दोनों कारणों से सुनने में कठिनाई होती है।

भारत में श्रवण विकारों के प्रमुख कारण

श्रवण विकार का प्रकार मुख्य भारतीय कारण
संवेदनशील श्रवण हानि जन्मजात बीमारियाँ, वायरल संक्रमण, जेनेटिक कारक, अधिक शोरगुल वाले क्षेत्र
संचरणीय श्रवण हानि कान का मैल, मध्य कान का संक्रमण, चोट, कुपोषण
मिश्रित श्रवण हानि ऊपर दिए गए दोनों प्रकार के कारणों का मिश्रण
भारतीय समाज में जागरूकता की आवश्यकता

ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों के सुनने की समस्याओं की जानकारी कम होती है। यदि बच्चे बोलने या सुनने में परेशानी महसूस करें तो तुरंत सरकारी स्वास्थ्य केंद्र या नजदीकी ENT विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। इससे बच्चों का पुनर्वास जल्दी और बेहतर तरीके से हो सकता है।

4. भाषण और श्रवण विकारों के कारण

भारतीय समाज में भाषण और श्रवण विकार क्यों होते हैं?

भारत जैसे विविध सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश में बच्चों में भाषण (Speech) और श्रवण (Hearing) विकार कई कारणों से हो सकते हैं। नीचे दिए गए प्रमुख कारण भारतीय संदर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक हैं:

मुख्य कारणों की तालिका

कारक विवरण
पर्यावरणीय कारक प्रदूषण, तेज आवाज़, संक्रमण, या किसी दुर्घटना के कारण कान या बोलने की शक्ति प्रभावित हो सकती है। ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण है।
आनुवांशिक (जेनेटिक) कारक यदि परिवार में किसी को भाषण या सुनने की समस्या रही है, तो बच्चे में भी यह समस्या हो सकती है। भारत में कई बार खानदानी बीमारियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी देखी जाती हैं।
जन्मपूर्व/जन्मोत्तर कारक माँ के गर्भावस्था के दौरान संक्रमण, दवाओं का दुष्प्रभाव या समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में इन समस्याओं का जोखिम अधिक रहता है। जन्म के बाद बुखार, पीलिया आदि भी कारण बन सकते हैं।
जीवनशैली और पोषण संबंधी कारक बच्चों को संतुलित आहार न मिलना या junk food ज्यादा खाना उनकी मानसिक और शारीरिक वृद्धि को प्रभावित कर सकता है, जिससे भाषण और श्रवण विकास बाधित होता है।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारण भाषाई विविधता, सामाजिक भेदभाव, या माता-पिता द्वारा बच्चों को बोलने-सुनने के लिए पर्याप्त अवसर न देना भी कई बार इन विकारों का कारण बनता है। कभी-कभी शर्म या झिझक भी बच्चों को खुलकर बोलने नहीं देती।
कुपोषण (Malnutrition) भारत में कुपोषण एक बड़ी समस्या है, जिससे बच्चों का संपूर्ण विकास बाधित होता है और इससे भाषा एवं सुनने की क्षमता पर असर पड़ सकता है।

भारतीय समाज में विशेष बातें

  • शहरी बनाम ग्रामीण अंतर: शहरों में जागरूकता और संसाधन ज्यादा उपलब्ध हैं, जबकि गाँवों में जानकारी व उपचार सीमित रहते हैं। इस कारण विकार की पहचान देर से होती है।
  • भाषाई विविधता: भारत में सैकड़ों भाषाएँ बोली जाती हैं, जिससे कभी-कभी बच्चे को दो या तीन भाषाएँ सीखनी पड़ती हैं। इससे भी शुरुआती भाषा-विकास पर असर पड़ सकता है।
  • पारिवारिक दबाव: परिवार द्वारा बच्चों से अधिक अपेक्षा रखना या उनकी समस्याओं को नजरअंदाज करना भी इन विकारों को बढ़ा सकता है।
  • सांस्कृतिक मिथक: कई बार समाज में यह धारणा रहती है कि बच्चा देर से बोलेगा तो खुद ठीक हो जाएगा, जो सही नहीं है। समय पर जाँच जरूरी है।

बच्चों के लिए क्या करें?

  • समय पर डॉक्टर से जांच कराएं यदि आपको बच्चे के बोलने या सुनने में कोई समस्या लगे।
  • बच्चे को पौष्टिक भोजन दें और खुलकर बातचीत करने का मौका दें।
  • अगर परिवार में किसी को ऐसी समस्या रही हो तो शुरू से ही सतर्क रहें।
  • टीवी-मोबाइल कम दें और बच्चों के साथ संवाद बढ़ाएं ताकि वे बोलने-समझने में आगे रहें।
  • स्कूल-शिक्षकों से सहयोग लें और विशेष जरूरत होने पर विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

5. समुदाय में जागरूकता और पुनर्वास के उपाय

भारत में भाषण और श्रवण विकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उपाय

भारत में बहुत से लोग भाषण और श्रवण विकारों को लेकर पूरी तरह जागरूक नहीं हैं। कई बार, इन समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है या परिवार इसे सामान्य विकास का हिस्सा मान लेता है। इसलिए समाज में जागरूकता बढ़ाना बेहद जरूरी है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

उपाय विवरण
जनसमुदाय में कार्यक्रम स्थानीय भाषा में नुक्कड़ नाटक, पोस्टर और रेडियो प्रसारण द्वारा जानकारी देना।
स्कूल एवं आंगनवाड़ी केंद्रों में जागरूकता सत्र शिक्षकों व बच्चों को भाषण व श्रवण विकार की पहचान और प्रारंभिक सहायता के बारे में समझाना।
माता-पिता कार्यशाला माता-पिता के लिए सरल भाषा में प्रशिक्षण ताकि वे शुरुआती लक्षण समझ सकें।
स्वास्थ्य शिविर गाँव-गाँव जाकर बच्चों की जाँच करना और आवश्यक सलाह देना।

परिवार व स्कूलों में समावेशी दृष्टिकोण

बच्चों के पुनर्वास में परिवार और स्कूल की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। परिवार का सहयोग, बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाता है, वहीं स्कूल उसे सीखने के समान अवसर देता है। कुछ सुझाव नीचे दिए गए हैं:

परिवार के लिए सुझाव

  • बच्चे से खुलकर बात करें और उसके बोलने-सुनने के प्रयासों की सराहना करें।
  • रोजमर्रा की गतिविधियों में बच्चे को शामिल करें जिससे उसकी सामाजिक कौशल विकसित हो सके।
  • अगर बच्चा सुन नहीं पा रहा है या स्पष्ट नहीं बोल पा रहा है तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लें।
  • घर पर अभ्यास के लिए गेम्स और कहानियों का उपयोग करें।

स्कूलों के लिए सुझाव

  • कक्षा में ऐसे बच्चों को आगे बैठाएँ ताकि वे शिक्षक को अच्छे से सुन सकें।
  • शिक्षकों को इन विकारों की पहचान व प्राथमिक हस्तक्षेप का प्रशिक्षण दें।
  • सहपाठियों को भी संवेदनशील बनाएं ताकि वे दोस्ती और सहयोग कर सकें।
  • आवश्यकतानुसार स्पीच थैरेपी या विशेष शिक्षा संसाधनों का उपयोग करें।

पुनर्वास के भारतीय संदर्भ में उपलब्ध संसाधन

भारत में भाषण और श्रवण विकारों के पुनर्वास हेतु कई सरकारी व गैर-सरकारी संसाधन उपलब्ध हैं:

संसाधन का नाम सेवाएँ/संपर्क विवरण
A.I.I.S.H (All India Institute of Speech and Hearing), मैसूरु स्पीच, लैंग्वेज और हियरिंग थेरेपी; मुफ्त जाँच शिविर; वेबसाइट देखें
NIEPMD (National Institute for Empowerment of Persons with Multiple Disabilities), चेन्नई स्पीच-थैरेपी, काउंसलिंग, शिक्षा एवं पुनर्वास सेवाएँ; वेबसाइट देखें
SARVA SHIKSHA ABHIYAN (SSA) स्कूल जाने वाले दिव्यांग बच्चों के लिए शिक्षा संबंधी सहायता एवं समावेशी शिक्षा सुविधाएँ
N.G.O.s (जैसे Spastics Society of India, Voice Foundation) सामुदायिक स्तर पर स्पीच और हियरिंग सहायता, काउंसलिंग एवं उपकरण उपलब्ध कराना
DISTRICT EARLY INTERVENTION CENTERS (DEICs) प्रत्येक जिले में स्थित केंद्र, जहाँ प्रारंभिक जाँच एवं पुनर्वास सुविधाएँ मिलती हैं

महत्वपूर्ण बातें:

  • इन सभी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए माता-पिता या अभिभावकों को सक्रिय रहना चाहिए।
  • समाज स्तर पर अधिक जागरूकता फैलाने के लिए पंचायत एवं स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद ली जा सकती है।
  • सरकारी योजनाओं जैसे ADIP योजना के तहत श्रवण यंत्र मुफ्त या कम दाम पर मिल सकते हैं।

इस प्रकार भारत में भाषण और श्रवण विकारों के लिए जागरूकता बढ़ाने, समावेशी दृष्टिकोण अपनाने तथा उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग करने से बच्चों का जीवन बेहतर बनाया जा सकता है।